जाग रहा हैं हिंदुस्तान

जाग रहा हैं हिंदुस्तान

वो खेल रहे थे सरकार-सरकार
पैदा हो गया भ्रष्टाचार
बच्चा उनका था, पर पालना हमारा था
झुलाते भी हमी थे
जागे भी तो कब?
जब सपोला बन गया सांप था

जो जगा रहा था वो अन्ना था
और जो जाग रहा था वो भी अन्ना था
सारा देश हो गया अन्ना था
जात-पात सब अन्ना था

आस्तीनों के सांप बिलों में जा बैठे थे
कुछ फुँकार रहे थे पतलूनो से
अन्ना कहता इसको मिटा देंगे
सरकार कहती नहीं, समझा देंगे

अपने ही बच्चे का
कोई कैसे गला दबाये
इस अन्ना के फंदे पर
कैसे उसे लटकाए?

पर जिद्दी अन्ना
जरुर वो दिन लायेगा
जब खुद सांप
अपने सपोले को खायेगा.

गणेश बिष्ट

 

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