बरखा मेरे गाँव आना !

बरखा !

बरखा !
मेरे गाँव आना
धान, गेंहू, लाई और सरसों के लिए।
आडू, दाडिम, किल्मोडी और घिंघारू के लिए।

बरखा !
मेरे गाँव आना
मेरे लिए न सही,
एक ही खेत वाले
हरिया के लिए
कूदाल से खोदकर बोने वाली
गाऊली ताई के लिए।

बरखा !
मेरे गाँव आना
चौमास ही नही,
बारह माँस आना।

यातायात......


बेहतर यातायात के साधनों और सड़को का आज भी पहाडों में अभाव है।
कई गाँव आज भी शहर से नही जुड़े हैं।
मुख्य मार्ग तक आने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता हैं।
बीमारों , बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुचना बहुत मुश्किल हो जाता हैं।
ज्यादा से ज्यादा गाँवों को मुख्य मार्गों से जोड़ने की पहल होनी चाहिए।

आस


इकल बुड-बाड़ी
दिनी तुम्कैं आवाज
भेटी जाया पोथी हम्कैं
को दिना को माँसा
झन भूलिया घर आपणा,
आपण पहाड़।
भुला ! माँ-बापू की
लागी जै छ डाढ।

हिमालय की गोद मे


पर्वत राज और
पर्वतों का समूह
आनायास ही मन को
लेते हैं मोह.

आराम आराम हैं


आराम आराम हैं ,
हराम तो उनके लिए
जिन्होंने कभी काम ही नही किया।

आपण पहाड़


हामर आम्-बुबू लै
पहाड़क ख्वर फाडी, उगाई
मडू, मानेर और राई।
आज देखो तो सारे पहाड़
ऐ गो तराई ।

मेहनत के फल

फल देना तो उसका काम हैं ।
एक सामान्य पहाड़ी व्यक्ति का जीवन कठिन परिश्रम और धैर्य का समन्वय होता हैं ।
अपनी छोटी-छोटी जरूरतों और खुशियों के लिए उसका संघर्ष बहुत व्यापक और निरंतर होता हैं ।

कुदरत के आँचल में


बर्फ से ढके पहाड़, बादलो की चादर और खिली-खिली धूप।
ठंडी हवाये, झूमते पेड़ ।
जीने के लिए बार-बार उकसाते हैं और मैं जब भी यहाँ आता हूँ,
तो जी लेता हूँ ।

सम्पूर्ण समर्पण


उत्तराँचल, देव भूमि हैं।
आस्था और विश्वास यहाँ एक जन्मजात गुण हैं।
यूं ही मुस्कुराते, अपना सारा जीवन प्रभु की सेवा में समर्पित करना सचमुच सच्चा और सम्पूर्ण समर्पण हैं।

मुस्कराहट ही जिनका गहना है....


जिनको जिंदगी से शिकायत होती हैं, उनके चहरे पर मुस्कराहट नही होती हैं
लेकिन मुस्कराहट ही जिनका गहना है,
कहीं न कहीं खुदा उन्ही में बसा हैं

तारे ज़मीन पर....

काफल तो ठीक हैं , लेकिन
जिस फल के लिए इन्हें तैयार होना हैं
इन्हें कोई बताता ही नही ।
इन पहाडो के आगे भी एक दुनिया हैं
जो इतनी मासूम तो हरगिज नही

ये सफर बहुत हैं कठिन , मगर .........

पड़ाव तो अभी दूर हैं
विश्राम ही कर लू ।
छोटे - छोटे विश्राम
और फ़िर एक लंबा सा आराम ।
 

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