डोर



डोर
मेरा एक गाँव है- खड़ाऊ
खुबसूरत पहाड़ी गाँव।
जिला है अल्मोड़ा, उतरांचल में
गाँव की तलहटी में बहती हैं नदी
और नदी में बहता है निर्मल जल
लहलहाते सीडीदार खेतों ने
दिया है रास्ता नदी को
जंगलों से घिरा है गाँव
हजारों चीड के पेड़ जैसे निहारते हैं गाँव को हरदम
बीच मैं सर्पाकार सड़क
जोड़ती है शहर से गाँव को
सदैव आशीर्वाद देते मंदिर
हिशालू, किल्मोड़ी,घिंघारू, आड़ू,
दाड़िम, खूबानी और आल्बुखारू के पेड़
गोते लगाते हवाओं के झोंके
गौरैया के झुण्ड, शोर मचाते और चहचहाते
घरों में बनाते हैं घोसले ।


सब कुछ तो है गाँव में।
हाँ! सब कुछ तो है
पर अब वो चहल पहल नहीं है
वो लहलहाते खेत नहीं हैं
गाड़ियाँ तो धूल उड़ाती हैं
पर खेतों मैं अब वो मिट्टी नहीं है


जब भी जाता हूँ गाँव
कहता है जैसे मुझसे मेरा गाँव
मैं- तेरे बचपन में तेरी दुनिया था
नंगे पाँव तुने मुझे महसूस किया है
मेरे पास जो कुछ था उपयोग किया है
मुझे तो आती है तेरी, क्या तुझे नहीं आती
जो कुछ दिया है मैंने तुझे, मांगता नहीं हूँ वापस
पर क्या तू भी मुझे कुछ दे पायेगा ?


रोता है दिल मेरा, तरसता है मन
ऐ गाँव मेरे!
मैं क्या तुझे दे पाऊँगा
पर एक डोर है तुझसे बंधी
जिसे में कभी नहीं तोड़ पाऊँगा।

गणेश बिष्ट

बरखा मेरे गाँव आना !

बरखा !

बरखा !
मेरे गाँव आना
धान, गेंहू, लाई और सरसों के लिए।
आडू, दाडिम, किल्मोडी और घिंघारू के लिए।

बरखा !
मेरे गाँव आना
मेरे लिए न सही,
एक ही खेत वाले
हरिया के लिए
कूदाल से खोदकर बोने वाली
गाऊली ताई के लिए।

बरखा !
मेरे गाँव आना
चौमास ही नही,
बारह माँस आना।

यातायात......


बेहतर यातायात के साधनों और सड़को का आज भी पहाडों में अभाव है।
कई गाँव आज भी शहर से नही जुड़े हैं।
मुख्य मार्ग तक आने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता हैं।
बीमारों , बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुचना बहुत मुश्किल हो जाता हैं।
ज्यादा से ज्यादा गाँवों को मुख्य मार्गों से जोड़ने की पहल होनी चाहिए।

आस


इकल बुड-बाड़ी
दिनी तुम्कैं आवाज
भेटी जाया पोथी हम्कैं
को दिना को माँसा
झन भूलिया घर आपणा,
आपण पहाड़।
भुला ! माँ-बापू की
लागी जै छ डाढ।

हिमालय की गोद मे


पर्वत राज और
पर्वतों का समूह
आनायास ही मन को
लेते हैं मोह.

आराम आराम हैं


आराम आराम हैं ,
हराम तो उनके लिए
जिन्होंने कभी काम ही नही किया।

आपण पहाड़


हामर आम्-बुबू लै
पहाड़क ख्वर फाडी, उगाई
मडू, मानेर और राई।
आज देखो तो सारे पहाड़
ऐ गो तराई ।
 

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